न छूने तक
ढेला बन पड़ा रहे।
काँच-सा स्वच्छ
मछली-सा चिकना
दुख-सा ठोस
सुख-सा फिसलन भरा।
पिघल जाए
तनिक छूते ही, हलकी आँच में
ह्विस्की ग्लास में लाल
लस्सी ग्लास में सफेद
नींबू पानी में स्वच्छ हो तैरती रहे बर्फ।
अपना कोई रंग नहीं होता
अपना कोई स्वाद नहीं होता।
चीनी डाले मीठा
नमक डाले तीता
विश्वास डाले स्वादिष्ट
संदेह डाले होता खट्टा।
ऐसी यह बर्फ कि
देखते लेने को मन करता
पर लेते न लेते पिघल बह जाती।
थामने पर मुँह में डालने मन करता
पर डालते न डालते जीभ जल जाती।
ऐसी यह बरफ कि
हमारी तनिक ऊष्मता के बदले
उसका सारा ठंडापन जलांजलि देता
प्रेम की तरह।